सन् 2008 में पाकिस्तान ने अपने यहाँ youtube.com को प्रतिबंधित करने के प्रयास में उसके वैश्विक प्रवेश को ही ब्लाक कर दिया था। इसके बाद 8 अप्रैल, 2010 का वह दिन जब चीन के हाइजैकर्स ने अमेरिका सहित दुनियाभर के 15 प्रतिशत इंटरनेट ट्रैफिक का आवागमन 18 मिनट के लिए अमेरिका से न होकर चीन से कर दिया। इन दोनों घटनाओं से दुनियाभर में हड़कंप मच गया। इंटरनेट विशेषज्ञों ने इसे "आईपी हाईजैकिंग" का नाम दिया। इस घटना ने कोर डोमेन नेम सिस्टम में एक बड़ी खामी को उजागर किया। इस घटना के पांच साल बाद इसराइल की हिब्रू यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड कंप्यूटर साइंस के डा. माइकल शापिरा का दावा है कि उन्होंने "आईपी हाईजैकिंग" का हल खोज लिया है। डा. शापिरा और उनके सहयोगी हेर्जबर्ग ने मिलकर इंटरनेट ट्रैफिक को भटकाने के प्रयास को रोकने के लिए "नेवर्हुड" नाम की प्रणाली बनाई है। इस प्रणाली में अपना आईपी एड्रेस सत्यापित कराने की इच्छुक हर पार्टी को यह बताना पड़ेगा कि कौनसा नेटवर्क उसके सबसे नजदीक है। इस तरीके से समूची प्रणाली के लिए नेवर्हुड को सही तस्वीर मिल जायेगी।
डा.शापिरा के मुताबिक प्रयोग से संकेत मिले हैं कि 20 से 30 प्रतिशत इंटरनेट भी अगर इस प्रणाली को अपनाले तो डीएनएस(Domain Name System) हाईजैकिंग को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है। फिलहाल द फेडरल कम्युनिकेसंस कमीशन ने इसकी व्यवहारिकता की जाँच के लिए कार्यकारी समूह का गठन किया है।
आखिर परेशानी की जड़ कहाँ पर है?:
डोमेन नेम सर्वर सभी तरह के इंटरनेट संचार का मार्ग है। यह मुख्यतः सांख्यिकी आईपी एड्रेस के लिए जिम्मेदार होता है। इसे बॉर्डर गेटवे प्रोटोकॉल (बीजीपी) भी कहते हैं। जब कोई यूजर सामग्री चाहता है, तो इंटरनेट सर्वर स्वयं ही वैश्विक रुट चार्ट को चेक करके यूजर को शीघ्रता से सामग्री उपलब्ध करवाता है। यूजर को सामग्री उपलब्ध कराने का यह तरीका 1980 के पहले का है। तब वेब नया और सीमित था, इसका काम विश्वशनीय शोध विश्वविद्यालयों और संस्थानों को आपस में जोड़ना था।
बीजीपी में इंटरनेट बहुत से छोटे नेटवर्कों के जरिये काम करता है। हर नेटवर्क अपने को सबसे तेज बताता है। इस तरह इंटरनेट ट्रैफिक सबसे तेज दावेदार की तरफ मुड़ जाता है। इस प्रकार आईपी हाईजैकिंग की घटना हो जाती है।
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