सोमवार, 8 जनवरी 2018

क्लोरोफ्लोरोकार्बन में कमी के कारण ओजोन छेद का आकार घटा

वायुमंडल की संचरना
पृथ्वी के वायुमंडल की दूसरी परत जिसे स्ट्रैटोस्फेयर(Stratosphere) कहते हैं, इसी परत में मौजूद है ओजोन गैस की लेयर! सन 2005 से 2016 के दौरान अंटार्कटिक के ऊपर मौजूद सतह में छिद्र का निर्माण हुआ था। नासा के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए शोध में यह बात सामने आयी है कि अब यह छिद्र धीरे-धीरे करके कम होता जा है। इसमें 20 फीसदी की कमी आयी है।
गौरतलब है कि ओजोन की परत में क्षरण का कारण धरती पर इस्तेमाल होने वाली क्लोरीन और ब्रोमीन गैस के अणु हैं। इसके अलावा मिथाइल क्लोरोफार्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि रसायन भी ओजोन की परत को तोड़ने में सक्षम हैं। इन रसायन पदार्थों को " ओजोन क्षरण पदार्थ " कहते हैं। इन रसायनों के अणु जब पर्यावरण में पहुंचते हैं तो कालांतर में ये ओजोन परत में क्षरण का कारण बनते हैं। ओजोन को नुकसान पहुँचाने वाली सबसे आम हैलोजन गैस क्लोरोफ्लोरोकार्बन(सीएफसी) है। सूर्य से निकलने वाली पराबैगनी किरणें क्लोरोफ्लोरोकार्बन के अणुओं को तोड़ देती हैं, जिससे क्लोरीन गैस मुक्त हो जाती है और ओजोन को नुकसान पहुंचाती है। धरती पर इनका प्रयोग मुख्यतः एसी, रेफ्रीजिरेटर, रंग, प्लास्टिक, फोम इत्यादि में होता है
अमेरिका स्थित नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक सुसान स्ट्राहन के अनुसार क्लोरीन की मात्रा कम होने के कारण ओजोन छिद्र में 20 फीसदी की कमी आयी है। शोध को "जियोफिजिकल रिसर्च" पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।